मैं शुन्य पर सवार
हूँ - BY ZAKIR KHAN
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ ,
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ ,
बे
अदब सा मैं
खूमार हूँ,
अब
मुश्किलो से क्या डरु,
मैं
ख़ुद केहर हज़ार
हूँ ,
मैं शुन्य
पर सवार हूँ।
यह
ऊँच नीच से
परे ,
मजाल
आँख में भरे
,
मैं
लड़ पड़ा हूँ रात
से ,
मशाल
हाँथ में लिए
,
ना
सूर्य मेरे साथ
है ,
तोह
क्या नई यह बात हैं
वह
श्याम को है
ढल गया
वह
रात से था डर गया
मैं
जुगनुओं का यार हूँ
,
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ।
भावनाएँ है
मर चुकी ,
संवेदनाएं हैं ख़त्म
हो चुकी,
अब
दर्द से क्या डरूं
,
यह
जिंदगी ही जख्म है ,
मैं
रहती मात हूँ
,
मैं
बेजान स्याह रात हूँ,
मैं
काली का श्रृंगार हूँ,
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ।
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ।
हूँ
राम का सा
तेज मैं,
लंका
पति सा ज्ञान हूँ ,
किसकी
करू मैं आराधना
,
सबसे
जो मैं महान
हूँ ,
ब्रम्हांड का मैं
सार हूँ ,
मैं
जल प्रवाह निहार
हूँ,
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ।
मैं
शुन्य पर सवार
हूँ।
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